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तलाक से मस्जिद तक, बदल रहा मुस्लिम बोर्ड

नई दिल्ली ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की रणनीति और सोच में बदलाव को पिछले कुछ वर्षों में साफ देखा जा सकता है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड ने महिलाओं के मस्जिद में नमाज़ पढ़ने को लेकर कहा कि पुरुषों की ही तरह महिलाओं को भी इसकी अनुमति है। एक वक्त ऐसा था कि शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (1985) को दरकिनार कर एआईएमपीएलबी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को भी झुकने को मजबूर कर दिया। हालांकि, वक्त के साथ बोर्ड के रुख में बदलाव स्पष्ट दिख रहा है और पहले तीन तलाक के बाद अब मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर बोर्ड ने अपना स्टैंड काफी लचीला किया है। 'महिलाएं मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए स्वतंत्र' बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एआईएमपीएलबी ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों की तरह ही नमाज के लिए मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति होती है। यास्मीन जुबेर अहमद पीरजादा की जनहित याचिका पर एआईएमपीएलबी का यह जवाब आया। एआईएमपीएलबी के सचिव मोहम्मद फजलुर्रहीम ने वकील एम आर शमशाद के माध्यम से दाखिल अपने हलफनामे में यह जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट में बोर्ड ने दाखिल किया हलफनामा बोर्ड की ओर से दाखिल हलफनामे के अनुसार,‘धार्मिक पाठों, शिक्षाओं और इस्लाम के अनुयायियों की धार्मिक आस्थाओं पर विचार करते हुए यह बात कही जा रही है कि मस्जिद के भीतर नमाज अदा करने के लिए महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश की अनुमति है। कोई मुस्लिम महिला नमाज के लिए मस्जिद में प्रवेश के लिए स्वतंत्र है। उसके पास मस्जिद में नमाज के लिए उपलब्ध इस तरह की सुविधाओं का लाभ उठाने के उसके अधिकार का उपयोग करने का विकल्प है।’ पढ़ें : तीन तलाक पर भी बोर्ड का स्टैंड रहा नर्म तीन तलाक को कानूनन अपराध घोषित करने के फैसले के खिलाफ बोर्ड ने भले ही सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, लेकिन इस पर बोर्ड का रुख नर्म रहा है। शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ही नहीं एआईएमपीएबी का भी कहना है कि तीन तलाक गैर-इस्लामी है। बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए जवाब में कहा गया था, 'तीन तलाक इस्लाम की ओर से गैर-इस्लामिक है और पाप की तरह है।' हालांकि, बोर्ड ने कहा था कि तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर इसके लिए सजा निर्धारित करने की जरूरत नहीं है और समाज के अंदर ही जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिससे बदलाव दिखने लगेगा। में बोर्ड का रुख था बेहद आक्रामक चर्चित शाहबानो तलाक मामले में बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से साफ इनकार कर दिया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो के पक्ष में आए न्यायालय के फैसले के खिलाफ बगवात की और देश के तमाम मुस्लिम संगठन इस फैसले का विरोध करने लगे। बोर्ड और संगठनों का कहना था कि न्यायालय उनके पारिवारिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन कर रहा है। तत्कालीन राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने दबाव में आकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर दिया। इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया था, जिसके कारण आज तक कांग्रेस और राजीव की आलोचना होती है।


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