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दर्दनाक सफर: जाना था महाराष्ट्र के औरंगाबाद, गलती से पहुंचीं बिहार, फिर...

औरंगाबाद कोरोना के चलते देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू कर दिया गया था। इस दौरान लोगों को अपने घरों से बिना वजह बाहर निकलने के लिए मना किया गया था। काम न होने के चलते प्रवासी मजदूर भी अपने पैतृक गांवों को लौट रहे थे। इसी दौरान 60 वर्षीय मीठाबाई कुंभाफले भी एक गलतफहमी के चलते महाराष्ट्र के औरंगाबाद की जगह बिहार के औरंगाबाद पहुंच गई। आइए जानते हैं कि करीब 8 महीने बाद कैसे वह वापस अपने घर लौटीं। औरंगाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर कोलाघर गांव में 60 वर्षीय मीठाबाई कुंभाफले अपने परिवार के साथ रहती हैं। उन्हें अपनी मां के स्वास्थ्य को लेकर बेहद चिंतित थी और उनसे मिलने की बात कहती थी। लेकिन के कारण उनके परिवार के सदस्य उन्हें अपनी मां के पास ले जाने के लिए तैयार नहीं थे। उनके परिवार का कहना था कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वह चलेंगे और उनकी मां से मिलकर आएंगे। लेकिन एक दिन जब पति और बच्चे खेत में काम करके घर लौटे तो उन्होंने देखा की मीठाबाई घर में नहीं थी। उनके परिवार ने हफ्तों के आस-पास के गांवों में उनकी तलाश की लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी। परिवार ने पुलिस स्टेशन में उनके लापता होने की शिकायत दर्ज कराई। उन्हें लगने लगा था कि उन्होंने अपने परिवार के सदस्य को खो दिया। झारखंड में नजर आईं मीठीबाई करीब आठ महीने बाद नवंबर में उन्हें जिला कलेक्टकर का फोन आया। उन्होंने बताया कि मीठाबाई जीवित हैं और जल्द ही घर आ जाएंगी। मीठाबाई को उनके गांव के करीब 1600 किलोमीटर दूर झारखंड में देखा गया था। यह उनके जीवन की सबसे लंबी दूरी की यात्रा थी। 24 नवंबर को वह अपने गांव लौटी। यहां स्थानीय लोगों ने एक नायक की तरह उनका स्वागत किया। जब वह घर लौटी तो उनके चेहरे पर हर वक्त मुस्कान बनी हुई थी, क्योंकि करीब आठ महीने बाद वह अपने परिवार से मिलीं। अधिकारियों ने जबरन गाड़ी में बिठाया मीठाबाई ने मुंबई मिरर को बताया कि एक दिन वह पैदल यात्रा करने के लिए घर से निकलीं थी। लेकिन रास्ते में जिला अधिकारियों ने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा लिया और कहा कि उनकी कोरोना जांच होनी है। उन्होंने बताया कि जब वह जांच केंद्र पर पहुंची तो वह अधिकारियों की टीम से अलग हो गई और भटक गई। उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि मीठाबाई प्रवासी मजदूरों के एक समूह के साथ चल पड़ीं, जोकि लॉकडाउन के कारण अपने पैतृक गांवों को लौट रहे थे। जब मजदूरों ने पूछा कि उन्हें कहां जाना है तो मीठाबाई ने कहा औरंगाबाद। उन्हें लगा कि वह बिहार के औरंगाबाद की बात कर रही हैं। वे सभी भी बिहार जा रहे थे। सभी बिहार जाने वाली ट्रेन में बैठ गए। गलत जगह जाने का हुआ अंदेशा तो झारखंड में उतरीं लेकिन औरंगाबाद पहुंचने के कुछ घंटे पहले मीठाबाई को लगा कि वह गलत रास्ते पर जा रही हैं। झारखंड के लातेहार में स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो मीठाबाई भी वहां उतर गईं। स्टेशन पर कई प्रवासी मजदूर भी ट्रेन से उतरे। रेलवे स्टेशन पर मौजूद स्वास्थ्य अधिकारी मीठाबाई समेत सभी लोगों को क्वारंटीन के लिए ले गए। इतनी समस्याओं के बाद एक अच्छी बात यह रही कि उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई। गुरुकुल में किया गया शिफ्ट वहां मौजूद मजिस्ट्रेट प्रीति सिन्हा ने बताया कि जब लोगों को क्वारंटीन सेंटर से वापस अपने घर भेजने की तैयारी कर रहे थे तो स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें एक महिला के बारे में बताया जोकि केवल मराठी बोलती हैं और वह कहीं जाना नहीं चाहती हैं। इसलिए उन्हें गुरुकुल अनाथालय में शिफ्ट कर दिया गया, यहां 22 लड़कियां भी रह रही थीं। मराठी भाषा समझने में आई दिक्कत अनाथालय में मीठाबाई को दो स्थानीय लोग मिले जिन्हें थोड़ी मराठी समझ में आती थी। लेकिन उन्हें भी ठीक से बातचीत करने में परेशानी हो रही थी। गुरुकुल के सुपरिटेंडेंट सुरेंद्र कुमार ने कहा कि मीठाबाई के साथ तालमेल बैठाने में कुछ समय लगा। उन्होंने बताया कि वह हमेशा परेशान रहती थीं। उन्होंने कई बार पूछा कि वह कहां से आई है लेकिन उनकी बोली के कारण उनके घर का पता करना बेहद मुश्किल हो गया था। उन्हें दो बार अनाथालय से भागने की कोशिश करते हुए भी पकड़ा गया। अनाथालय के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें खाने में दाल और चावल पसंद नहीं था। लेकिन वह फल, सब्जियां और चपाती खाना पसंद करती थीं। समय बीतने के साथ उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी। वह रोती रहतीं और अधिकारियों ने उन्हें घर छोड़ने की गुहार लगाती रहीं। जब मजिस्ट्रेट प्रीति सिन्हा को मीठाबाई की हालत का पता चला तो उन्होंने लातेहार के नवनियुक्त जिला कलेक्टर अबू इमरान के साथ बातचीत की। इमरान कहते हैं कि उन्होंने मीठाबाई से बात करने की कोशिश की, गूगल अनुवाद का भी इस्तेमाल किया लेकिन यह नहीं पता चला कि वह कहां से आईं हैं। कलेक्टर ने मराठी बोली जानने वाले दोस्तों को बुलाया लातेहार के कलेक्टर अबू इमरान ने महाराष्ट्र से अपने कुछ दोस्तों को बुलाया। उनके बेच के साथी और आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े और आजम शेख ने मीठाबाई से बातचीत की। जिसके बाद पता चला कि वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से हैं। औरंगाबाद जिले के कलेक्टर से बात की गई। उन्होंने सभी अधिकारियों को मीठाबाई के परिवार को तलाशने के निर्देश दिए। पुलिस अधिकारियों ने रिकॉर्ड खंगाले तो परिवार की ओर से दर्ज मीठाबाई की गुमशुदगी की रिपोर्ट मिली। तब जाकर उनके परिवार का पता चला। कलेक्टर ने मीठाबाई की उनके परिवार से फोन पर बात करवाई। गांववालों ने जमा किए 4000 रुपये गांव के सरपंच ने बताया कि औरंगाबाद जिला कलेक्टर ने उनसे पूछा कि क्या मीठाबाई को वापस लाने के लिए वह गाड़ी की व्यवस्था कर सकते हैं। लेकिन वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। जिसके बाद अधिकारी ने अपनी तरफ से गाड़ी भेजी। ग्रामीणों ने पेट्रोल और अन्य खर्च के तौर पर 4000 रुपये जमा किए। जिसके बाद मीठाबाई के बेटे, सरपंच और पुलिस की एक छोटी टीम मीठाबाई को लेने के लिए झारखंड निकले और उन्हें वापस घर ले आए।


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