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अपनी दरकती ज़मीन देख लें ममता बनर्जी, मोदी के खिलाफ दरख़्त खड़ा करना तो दूर की कौड़ी है

कोलकाता ऊपर दिख रही तस्वीर को देखकर कुछ याद आया, बहुत पुरानी भी नहीं है यह तस्वीर। यह नजारा लगभग तीन साल पहले 23 मई 2018 का है। जब विपक्षी दलों के अधिकांश नेता, कर्नाटक में एक मंच पर एक साथ कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में दिखाई दिए। इन नेताओं की मौजूदगी को देखकर कहा गया कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यह भाजपा विरोधी मंच की बुनियाद है। मंच पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, केरल के सीएम, आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, माकपा नेता सीताराम येचुरी, तेजस्वी यादव, शरद पवार, शरद यादव विपक्ष के लगभग सभी बड़े चेहरों की मौजूदगी थी। यही नजारा देख भाजपा विरोधी मंच की बुनियाद रखी जा रही थी लेकिन बुनियाद कितनी मजबूत थी इसका पता लोकसभा चुनाव करीब आते ही चल गया। बंगाल चुनाव के बीच ममता को विपक्षी नेताओं की आई याद के बीच एक बार फिर ममता बनर्जी को विपक्षी एकता की याद आई है। दूसरे चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने गैर बीजेपी नेताओं को पत्र लिखकर कहा है कि लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। लोकतंत्र और संविधान पर बीजेपी के हमलों के खिलाफ एकजुट और प्रभावी संघर्ष का समय आ गया है। पत्र अधिकांश उन्हीं नेताओं को लिखा गया जिनकी मौजूदगी एक वक्त कर्नाटक के मंच पर थी। पत्र में एनसीटी विधेयक का जिक्र ममता बनर्जी ने किया है। ममता ने कहा है कि एनसीटी विधेयक का पारित होना एक गंभीर विषय है, बीजेपी सरकार ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार की सभी शक्तियों को छीन लिया है। दिल्ली के मसले को उठाते हुए ममता बनर्जी ने विपक्षी नेताओं को एकजुट होने की बात कही है। कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी में AAP ममता बनर्जी ने जिस दिल्ली के मसले को आधार बनाते हुए विपक्षी एकजुटता की बात की है, उसी दिल्ली पर काबिज आम आदमी पार्टी कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी कर रही है। आम आदमी पार्टी (AAP) धीरे- धीरे देश की राजधानी दिल्ली से बाहर आगे बढ़ रही है। उन राज्यों पर AAP का फोकस अधिक है जहां कांग्रेस कमजोर होती जा रही है। उदाहरण के लिए गुजरात, उत्तराखंड, गोवा और कई दूसरे राज्य हैं। हाल ही में आम आदमी पार्टी ने गुजरात नगर निगम चुनाव में शानदार एंट्री मारी। बीजेपी से कोई पार्टी पूरे देश में इस वक्त सीधी टक्कर लेती नजर नहीं आ रही। आम आदमी पार्टी की कोशिश है कि वो बीजेपी के सामने अपने आपको खड़ी कर पाए। यूपी चुनाव की तैयारी में भी पार्टी जोर-शोर के साथ लगी है। ऐसे में कांग्रेस के साथ शायद ही वो खड़ी नजर आए। चुनाव के बीच क्या संदेश देने की कोशिश पश्चिम बंगाल चुनाव के बीच ममता बनर्जी के इस पत्र को कई नजरिए से देखा जा रहा है। चुनावी जानकारों की मानें तो ममता बनर्जी का बंगाल में सीधा मुकाबला बीजेपी से है। उनकी ओर से कई बार यह जताने की कोशिश की गई है कि वो अकेले सीधी टक्कर ले रही हैं। चुनाव के बीच ममता बनर्जी ने तीन पेज का पत्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राकांपा के नेता शरद पवार, द्रमुक के एमके स्टालिन, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, राजद के तेजस्वी यादव, शिवसेना के उद्धव ठाकरे और दूसरे नेताओं को लिखा। उनकी ओर से यह जताने की कोशिश है कि बंगाल के अलावा बाहर भी वो बीजेपी को घेर रही हैं। खैर यह चुनाव है वही पश्चिम बंगाल का चुनाव जहां विपक्षी दल अलग- अलग मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। ममता बनर्जी कोई राजनीति में नई नहीं हैं और उन्हें भी पता है कि जिस एकजुटता की बात कर रही हैं वो कितना मुश्किल है। यूपी, बिहार सब जगह प्रयोग हुए फेल देश की राजनीति की धुरी के दो बड़े प्रदेश यूपी और बिहार। जहां की सियासत देश की राजनीति को दिशा देने का काम करती है। इन दो प्रदेशों में भी विपक्षी एकजुटता के बड़े- बड़े प्रयोग हुए लेकिन नतीजा सबने देखा। 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा दोनों दल मिलकर चुनाव लड़े लेकिन नतीजा सबने देखा। विधानसभा की हार के बाद लोकसभा चुनाव में एक और नया प्रयोग हुआ जब बीएसपी और सपा मिलकर साथ चुनाव लड़े। उसका भी नतीजा सभी ने देखा। जो चुनाव के पहले साथ थे नतीजों के कुछ दिन बाद ही अलग भी हो गए। और अब अपने फैसले पर पछतावा भी कर रहे हैं। बिहार में भी ऐसा ही प्रयोग बीजेपी के खिलाफ हुआ। जब नीतीश और आरजेडी साथ आए लेकिन यह बहुत दिनों तक चल नहीं पाया। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। उसका भी नतीजा सबने देखा। रिजल्ट के बाद यह कहा गया कि आखिर साथ आए ही क्यों। महाराष्ट्र में इन दिनों जो कुछ चल रहा है उसको भी सब देख रहे हैं। सरकार के भीतर ही एक दूसरे पर सवाल। विपक्षी दल के नेता साथ इसके पहले न आए होते और इस एकजुटता की बात होती तो शायद लोग यह सोचते कि कुछ हो सकता है। लेकिन सारे प्रयोग हो चुके हैं। विपक्षी दलों में अधिकांश दलों की स्थिति कमजोर होती जा रही है। ऐसे वक्त में ममता बनर्जी की एकजुटता की अपील का शायद ही कोई असर हो।


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