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'नॉन पॉलिटिकल लोगों से काम नहीं चलेगा प्रियंका को सौंपनी होगी पार्टी की कमान'

की सलाहकार कमेटी के मेंबर और कांग्रेस के सीनियर लीडर एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार मामला उनके इस बयान का है कि बीजेपी जिस पिच पर बोलिंग कर रही है, कांग्रेस ने अगर उससे कोई सबक नहीं लिया तो 2024 में फिर से नरेंद्र मोदी ही आएंगे। उनका कहना है कि बीजेपी और संघ की कोशिश है कांग्रेस 'मुस्लिम पार्टी' साबित हो जाए। दुर्भाग्य यह कि कांग्रेस पार्टी ऐसा साबित करती जा रही है। एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने आचार्य प्रमोद कृष्णम से बात कर जानने की कोशिश की कि कांग्रेस को क्या सबक लेना चाहिए और कांग्रेस चूक कहां कर रही है। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश : आपका एक बयान आया है कि कांग्रेस ने अगर सबक नहीं लिया तो 2024 में भी नरेंद्र मोदी ही आएंगे। वह सबक क्या है? 'धर्म' का नशा अफीम से भी ज्यादा होता है। मोदी सरकार अपने सात साल के कार्यकाल में सभी मोर्चों पर फेल साबित हुई है। लेकिन बीजेपी ने लोगों को धर्म का नशा ऐसा चटा रखा है कि कोई भी उसकी नाकामी की तरफ देखना ही नहीं चाहता। देश में धर्म का ऐसा ज्वालामुखी धधक रहा है, कोई भी मुद्दा लेकर आइए, उसमें उसका स्वाहा हो जाना तय है। बीजेपी अपने को देश की एक मात्र हिंदू पार्टी के रूप में स्थापित कर चुकी है। मैं यह नहीं कहता कि कांग्रेस पार्टी अपनी विचारधारा से समझौता कर ले, लेकिन उसे बीजेपी की बनाई इस धारणा को तोड़ना होगा कि वह हिंदू विरोधी है। आपकी नजर में कांग्रेस से चूक कहां हो रही है? मैंने पहले भी कहा था, आज भी कह रहा हूं कि पार्टी के अंदर कुछ नॉन पॉलिटिकल लोगों के आ जाने की वजह से कांग्रेस आरएसएस और बीजेपी के फेंके गए जाल में फंसती जा रही है। संघ और बीजेपी की कोशिश कांग्रेस को 'मुस्लिम पार्टी' साबित करने की है और कांग्रेस अपने को मुस्लिम पार्टी साबित करती जा रही है। कांग्रेस को असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल, बंगाल में फुरफुरा शरीफ के पीरजादा और केरल में मुस्लिम लीग से गठबंधन करने की जरूरत ही नहीं थी। इस गठबंधन से कांग्रेस के खिलाफ हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। नतीजा यह रहा कि असम और केरल का जीता हुआ इलेक्शन पार्टी हार गई और बंगाल में उसे एक भी सीट नहीं मिली, जबकि पिछले कार्यकाल में वह विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इस दुविधा से बाहर आने के लिए कांग्रेस के पास क्या रास्ता है? वह समय अब नहीं रहा, जब मुस्लिम वोट बैंक हुआ करता था। अब हिंदू वोट बैंक बन चुका है। चुनाव के समय मंदिर जाने और पूजा-पाठ करने से कुछ नहीं होता। पब्लिक तो साथ वालों के चेहरे देखती है। कांग्रेस को उन लोगों को आगे करना होगा, जिन पर हिंदू विरोधी होने का ठप्पा नहीं लगा है। हिंदू उन्हें अपना समझते हों, तभी बीजेपी के धर्म के कार्ड को बेअसर किया जा सकता है। लेकिन नॉन पॉलिटिकल लोगों से पॉलिटिक्स कराई जा रही है, उसमें बीमारी का इलाज लक्षण देखकर हो रहा है, बुनियाद में जाने की जरूरत नहीं समझी जा रही है। इसीलिए मैं प्रियंका गांधी के पार्टी की कमान संभालने की वकालत करता हूं। पांच राज्यों में हार की समीक्षा के लिए पार्टी आलाकमान ने एक कमिटी गठित की है। इस कमिटी के किसी नतीजे पर पहुंचने की कोई उम्मीद है?कौन सा ऐसा चुनाव था, जिसमें हार के बाद समीक्षा करने के लिए कमिटी न बनी हो? 2014 की हार के बाद एके एंटनी की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने तो खुलकर कहा था कि पार्टी का अल्पसंख्यकों के प्रति जरूरत से ज्यादा झुकाव बहुसंख्यक हिंदुओं को पसंद नहीं आया, और वही पार्टी की हार का कारण बना। क्या हुआ उस रिपोर्ट का? ऐसा नहीं है कि पार्टी लीडरशिप को वजह नहीं मालूम है। चुनाव में हार के बाद समीक्षा करने के लिए कमिटी बनाने की परंपरा है। बंगाल में ऐसी क्या वजह रही कि बीजेपी हर फॉर्म्युला आजमाने के बाद भी कामयाब नहीं हो पाई? बंगाल में बीजेपी की जो परफॉर्मेंस रही, उसे मैं कतई कमतर नहीं आंकता, यह अलग बात है कि वह सरकार नहीं बना पाई। बंगाल में ममता बनर्जी की जीत की भी सबसे बड़ी वजह यह रही कि उन्होंने अपने ऊपर 'मुस्लिम परस्त' होने का ठप्पा नहीं लगने दिया। जैसे ही बीजेपी ने ऐसा करने की कोशिश की, उन्होंने ट्रैक बदल दिया और यह स्थापित करने में कामयाब रहीं कि वह बीजेपी नेताओं से बड़ी हिंदू हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के भी लगातार दो चुनाव जीतने की वजह यही है कि वह अपनी छवि हिंदू नेता की बनाए हुए हैं। हर मीटिंग की शुरुआत भारत माता की जय, बजरंगबली की जय से करते हैं। कोविड काल में अलग-अलग राज्यों में जो अव्यवस्था देखने को मिली, क्या इसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा? यह तो विपक्ष पर निर्भर करता है कि वह बीजेपी के प्रोपेगैंडा का कैसे सामना कर पाता है, वरना बीजेपी तो यह भी स्थापित कर सकती है कि अगर मोदी जी नहीं होते तो जितनी मौतें हुई हैं, उससे कहीं ज्यादा हो सकती थीं। ऐसा करने में अगर वह कामयाब रही तो फिर चाहे जितनी भी अव्यवस्था रही हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।


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