कन्नौज कहते हैं कि कन्नौज की नालियों में इत्र बहता है। इसे महसूस करना है तो छिपट्टी मोहल्ले में आना होगा। संकरी गलियों वाले इस मोहल्ले में इत्र कारोबारियों के कई मकान हैं। यहां हर जगह इत्र महकता है। पीयूष जैन के पुरखे कई पीढ़ियों से कन्नौज में ही रहते आए हैं। कानपुर के उलट यहां के लोग इस परिवार के बारे में ज्यादा जानते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि बढ़िया मकान और अच्छा कारोबार होने के बावजूद पीयूष कई बार शादियों या किसी अन्य समारोहों में पैजामा और रबड़ की चप्पल पहनकर ही पहुंच जाते थे। हालांकि वे लोगों से ज्यादा मिलते जुलते नहीं थे। लोगों के मुताबिक पीयूष के पिता महेश चंद्र जैन पेशे से केमिस्ट हैं। दो साल पहले महेश की पत्नी का निधन हो गया था। महेश से ही उनके बेटों पीयूष और अंबरीष ने इत्र और खाने-पीने की चीजों में मिलाए जाने वाले एसेंस (कंपाउंड) बनाने का तरीका सीखा। जानकार बताते हैं कि पीयूष के परिवार की माली हालत पिछले 15 साल में पूरी तरह बदल गई। इसके पहले परिवार के पास जैन स्ट्रीट के मौजूदा मकान का एक छोटा सा हिस्सा ही था। जयपुर से कारीगर बुलवाए गए आर्थिक हालात बदले तो आसपास के दो मकानों को खरीदकर एक कर दिया गया। दावा किया जाता है कि करीब 700 वर्ग गज के इस मकान को बनवाने के लिए जयपुर से कारीगर बुलवाए गए थे। मोटी-मोटी दीवारें, महंगे एयरकंडिशनर, स्टील की बालकनी और दरवाजें इस कोठी को बाकी मकानों से एकदम अलग बनाते हैं। इतना बड़ा कारोबार और जोखिम होने के बावजूद घर के किसी भी बाहरी हिस्से में एक भी सीसीटीवी फुटेज नहीं दिखा। घर भी ऐसा बना है कि दूसरे मकानों से बालकनी के अलावा कुछ नहीं दिखता। कन्नौज के मकान में रहता है स्टाफइस मकान में मुख्यतौर पर महेश चंद्र जैन और उनका स्टाफ रहता है। पीयूष और अंबरीष यहां अक्सर आते-जाते रहते थे। पड़ोसियों के अनुसार, यह परिवार बहुत विनम्र है, लेकिन वे किसी भी कार्यक्रम में कभी-कभार ही दिखते हैं। शादियों में कई बार पीयूष पैजामा और हवाई चप्पल पहनकर ही पहुंच जाते थे। पीयूष और अंबरीष के 6 बेटे-बेटियां हैं। सभी कानपुर में पढ़ते हैं और कन्नौज में कम ही आते-जाते थे। छिपट्टी मोहल्ले के कई लोग इस परिवार को 'रूखा' करार देते हैं। एक स्थानीय शख्स के मुताबिक, भले ही बाहरी लोग पीयूष और उसके परिवार की 'हैसियत' का अंदाजा नहीं लगा पाए, लेकिन कन्नौज में बिजनेस से जुड़ी लॉबी में पीयूष और अंबरीष का नाम पूरे 'सम्मान' से लिया जाता था। गवाहों पर सवाल प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, 24 दिसंबर को डीजीजीआई की टीम तलाशी के लिए अपने साथ दो गवाहों को जैन के घर ले जाना चाहती थी, लेकिन मोहल्ले का कोई भी शख्स इसके लिए तैयार नहीं हुआ। मौके पर आए दो शख्स नेम सिंह यादव और अमित दूबे इसके लिए तैयार हो गए। नेम सिंह यादव लंबे समय से समाजवादी पार्टी तो अमित दूबे बीजेपी में सक्रिय हैं। कई लोगों ने बेहद संवेदनशील मामले में दो राजनीतिक व्यक्तियों को ले जाने पर सवाल भी उठाए हैं।
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