परिसीमन आयोग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के लिए जो प्रस्ताव दिए हैं, उन्हें लेकर कश्मीर में असंतोष है। आयोग की इन सिफारिशों को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया तो कश्मीर घाटी क्षेत्र की विधानसभा सीटों की संख्या में एक का इजाफा होगा, लेकिन जम्मू क्षेत्र में छह सीटें बढ़ जाएंगी। यानी कश्मीर में इसके बाद 47 सीटें होंगी तो जम्मू में 43 सीटें। इसके अलावा पहली बार आयोग ने 9 सीटें एसटी और सात सीटें एससी समुदायों के लिए रिजर्व करने की बात भी कही है। प्रमुख स्थानीय पार्टियों के संगठन गुपकार अलायंस ने इस रिपोर्ट को नामंजूर कर दिया है। बीजेपी शुरू से जम्मू क्षेत्र के कम प्रतिनिधित्व की शिकायत करती रही है। वह परिसीमन आयोग के जम्मू क्षेत्र में छह सीटें बढ़ाने के ताजा प्रस्ताव से भी खुश नहीं है। प्रदेश बीजेपी का कहना है कि इस प्रस्ताव के लागू होने के बाद भी कश्मीर का पलड़ा जम्मू की तुलना में भारी रहेगा। 2014 में जब जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार चुनाव हुए थे, तब बीजेपी को 25 सीटों पर जीत मिली थी और ये सारी जम्मू क्षेत्र में थीं। इसीलिए आयोग के हालिया प्रस्ताव के बाद यह सवाल उठ रहा है कि कहीं यह पूरी कवायद जम्मू क्षेत्र की सीटें बढ़ाने के लिए तो नहीं की जा रही है। परिसीमन का आधार आबादी होती है और 2011 के सेंसस के मुताबिक घाटी क्षेत्र की आबादी जम्मू की तुलना में 15 लाख से भी अधिक है। उस लिहाज से भी यह प्रस्ताव तर्कसंगत नहीं लगता। कहा जा रहा है कि आयोग ने अपनी सिफारिशों का औचित्य साबित करने के लिए मतदाता सूची, भौगोलिक व संचार सुविधाएं और हर क्षेत्र की आबादी में प्लस माइनस 10 फीसदी मार्जिन जैसे कारकों को आधार बनाया है। आयोग के प्रस्ताव का विरोध करने वालों का कहना है कि जब पूरे देश में परिसीमन के लिए 2021 सेंसस के आंकड़ों का इंतजार किया जा रहा है तो जम्मू-कश्मीर में भी उसी आधार पर सीटों की संख्या में फेरबदल किया जाना चाहिए। विरोधियों का यह भी कहना है कि धारा 370 को खत्म किए जाने और जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट को अदालत में चुनौती दी गई है। इसलिए परिसीमन के बारे में किसी फैसले से पहले अदालत के निर्णय का इंतजार करना चाहिए। यह समझना जरूरी है कि लोकतंत्र में महत्वपूर्ण फैसलों की एकमात्र कसौटी यह नहीं होती कि निर्णयकर्ता उन फैसलों को कितना सही मानता है। अक्सर बड़ा सवाल यह हो जाता है कि लोगों को वह फैसला कैसा नजर आता है। कश्मीर में हालात पहले से ही नाजुक हैं। ऐसे में कोई भी ऐसा फैसला, जिसे यहां का एक वर्ग ठीक न माने, स्थितियों को बेहतर बनाने में मददगार नहीं साबित होगा। इसलिए परिसीमन के मामले में कश्मीर और जम्मू दोनों ही क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और जनता का भरोसा हासिल करना बेहतर रहेगा।
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