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जब साउथ के सुपरस्टार NTR को सुननी पड़ी थी मंत्री की गालियां, फिर बने राजनीति का चमकता सितारा

प्रभाष जोशी, वरिष्ठ पत्रकार एनटीआर न अंग्रेजी या अमेरिकी किस्म के भारतीय नेता थे और न ही अपनी पार्टियों के ठप्पे वाले पेशेवर नेता। उन पर पश्चिमी लोकतांत्रिकता का मुलम्मा नहीं चढ़ा था और न ही वह राजनीति को सत्ता और धन-दौलत बनाने का धंधा मान कर उसमें मुनीम से धन्नासेठ हुए थे। देसी-विदेशी किसी राजनीति में उनकी कोई ट्रेनिंग नहीं हुई थी इसलिए उम्मीद की जा सकती थी कि परंपरा एक भारतीय के रूप में जो पंचायत बोध देती है, उसका रूप देखने को मिलेगा। वह सत्ता को नाथने के लिए राजनीति में चले आए थे। किस्सा यह है कि सन 82 में वह नेलोर आए और कार्यक्रम के लिए तरोताजा होने के लिए एक सरकारी गेस्ट हाउस में पहुंचे। वहां सभी कमरे भरे हुए थे। सिर्फ एक खाली था जो राजस्व मंत्री जनार्दन रेड्डी के लिए ही रखा रहता था। तीन सौ से ज्यादा फिल्मों के तेलुगु सुपर स्टार के लिए कर्मचारियों ने कमरा तो खोल दिया पर यह भी साफ कहा कि मिनिस्टर साब आ गए तो हमारी खाल उधेड़ देंगे। जब मंत्री ने दी चुन-चुनकर गालियां आखिरकार वही हुआ। रामराव जब नहा रहे थे तो मंत्री महोदय आ टपके और अपने कमरे को इस्तेमाल में पाकर आपा खो बैठे। उनने कर्मचारियों को ही नहीं दुनिया भर को चुन-चुन कर गालियां दीं और सब को रास्ते लगाने की धौंस देकर चले गए। एनटीआर लौटते हुए मद्रास आए और वहां अपने दोस्त नागी रेड्डी को कहा कि कितनी ही दौलत और शोहरत हो, राजनीतिक सत्ता के सामने बेकार है। वहीं उनने घोषणा कर दी कि वह राजनीति में जाएंगे। हैदराबाद के अपने रामकृष्ण स्टूडियो में मार्च 82 में उन्होंने अखबार वालों को बुलाकर कहा, 'मैं अब साठ बरस का हो गया हूं और समाज सेवा करने के लिए राजनीति में उतर रहा हूं। अपनी संपत्ति मैंने सात बेटों और चार बेटियों में बांट दी है ताकि परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर बाकी के साल आंध्र के लोगों की सेवा में लगा सकूं।' लेकिन जिस परिवार की जिम्मेदारियों से वह मुक्त हो होकर राजनीति में आए थे, उसी ने उनकी राजनीति को चौपट कर दिया। जीवनी लिखने आईं, बन गईं पत्नीरामराव की पहली पत्नी का कैंसर से देहावसान हो गया था। रामराव परिवार में उथल-पुथल लक्ष्मी पार्वती के आने से हुई। लक्ष्मी पार्वती रामराव की जीवनी लिखने के लिए उनसे मिलने लगीं और फिर दोनों ने विवाह कर लिया। सत्तर पार करने के बाद किया गया यह विवाह रामराव के बेटों-दामादों को पसंद नहीं आया पर वे कुछ कर नहीं सकते थे। लक्ष्मी पार्वती को साथ लेकर चुनाव अभियान में निकले रामराव ने 294 की विधानसभा में 214 सीटें जीतीं। उनका करिश्मा ऐसा चला कि तब पहली बार आंध्र से प्रधानमंत्री हुए नरसिंह राव की कांग्रेस का सफाया हो गया। परिवार को भले ही पसंद न आया हो लेकिन आंध्र के लोगों को रामराव के दूसरे विवाह से कोई एतराज नहीं हुआ और अगर 94 के चुनाव नतीजों से नापा जाए तो जनता ने उनकी नई पत्नी को जबरदस्त मंजूरी दी। इस कारण से इस जीत का श्रेय लक्ष्मी पार्वती को भी दिया गया। राजनीति में लक्ष्मी पार्वती की दखलंदाजी को सबसे पहले चुनौती रामराव के तीसरे पुत्र हरिकृष्ण ने दी। हरिकृष्ण चैतन्य रथ पर सवार रामराव के सारथी थे। लेकिन जब रामराव ने अपनी पारंपरिक विधानसभा सीट तेकाली खाली की और अफवाहें उड़ने लगीं कि लक्ष्मी पार्वती वहां से चुनाव लड़ने वाली हैं तो हरिकृष्ण जागे। उन्हें लगा कि पिता की सीट से लक्ष्मी पार्वती जीत गईं तो रामराव की राजनीतिक विरासत पर दावा करेंगी, पुत्र और दामाद ताकते रह जाएंगे। जब हुआ था 'हाई ड्रामा'अपनी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के साथ रामराव एक तरफ थे और उनका भरा-पूरा परिवार दूसरी तरफ उनके खिलाफ था। एनटीआर का परिवार लक्ष्मी पार्वती को पत्नी मानने को भी तैयार नहीं था। उनके जीते जी परिवार ने लक्ष्मी पार्वती को सौतेली मां मानने से इनकार किया ही, जब वह नहीं रहे तो उनके साथ बासवतारकम्मा यानी पहली पत्नी की तस्वीर बनवा कर लगवाई। परिवारवालों के साफ-साफ कह देने से पंडितों ने भी सारे उत्तरकार्य में जहां-जहां पत्नी का नाम लिया जाना था, वहां पूर्व पत्नी बासवतारकम्मा का ही नाम लिया। लक्ष्मी पार्वती ने अखबार वालों सामने छाती-माथा कूटते शिकायत की, 'सिंदूर मेरा पुंछा, चूड़ियां मेरी फूटीं, विधवा हुई मैं और वे मेरा नाम तक नहीं लेने दे रहे। उस औरत का नाम ले रहे हैं जो 11 साल पहले मर गई।' एनटीआर के परिवार वाले अगर लक्ष्मी पार्वती को उत्तर कार्य से बाहर रखना चाह रहे थे तो लक्ष्मी भी उन्हें शव के पास फटकने नहीं देना चाहती थी। पार्थिव शरीर के पास से हटा दी गई लक्ष्मी पार्वती की कुर्सी सबसे छोटा बेटा जयकृष्ण बंजारा हिल्स ही रहता था लेकिन उसे भी पिता के निधन की खबर दो घंटे बाद दी गई। परिवार वाले चाहते थे कि रामाराव का शव उनके पुराने घर ले जाएं लेकिन लक्ष्मी पार्वती हाथ नहीं लगाने दे रही थीं। बड़ी मुश्किल से वह इस बात पर राजी हुईं कि शव लाल बहादुर स्टेडियम में रखा जाए ताकि जनता उनके अंतिम दर्शन कर सके। वहां भी लक्ष्मी पार्वती सारे समय उनके सिर के पास बनी रहीं। जब रामाराव का तीसरा बेटा परिवहन मंत्री हरिकृष्ण हांगकांग से सरकारी यात्रा छोड़ कर आया तो उसने हुक्म दे दिया कि शव के पास मंच पर सिर्फ परिवार वाले बैठेंगे। यानी लक्ष्मी पार्वती और उनके लोग, विधायक नीचे उतर जाएं। कुछ विधायकों को पीटा गया और लक्ष्मी पार्वती कुछ देर के लिए गुसलखाने गईं तो उनकी कुर्सी भी हटा दी गई। (स्वर्गीय प्रभाष जोशी की पुस्तक 'जीने के बहाने', प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन से साभार)


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