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20 साल में सोवियत की जद से निकला रूस, दुनिया से लोहा लेने के लिए खुद की सेना को किया मजबूत

नई दिल्ली: रूस महज तीन-चार दिन में ही यूक्रेन पर भारी पड़ने लगा। उसने यूक्रेन की राजधानी कीव तक पहुंच बना ली। ऐसे समय में दोनों देशों के सैन्य ताकत को लेकर काफी चर्चा है। इसकी आपस में तुलना की जा रही है। हालांकि, सच ये है कि दोनों देशों की सैन्य ताकतों की कोई तुलना नहीं है। एक तरफ रूस है, जो दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में शुमार है तो वहीं यूक्रेन के पास उसके ताकत का आधा भी नहीं है। 21वीं सदी में रूसी सेना में बहुत से बदलाव हुए हैं और उसने खुद को तकनीकी रूप से बहुत उन्नत भी किया है। बीते करीब 20 सालों में उसकी ताकत काफी इजाफा हुआ है और वह दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकतों में शामिल हो गई है। रूस की सेना में सबसे बड़े बदलाव की शुरुआत 2000 के दशक के अंत में हुई। तब तक रूस की सेना करीब सेवियत संघ की सेना के बराबर या कुछ ही ज्यादा हुआ करती थी। साथ ही तब रूस की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी। इस कारण वह अपने जीडीपी का बड़ा हिस्सा सैन्य ताकत पर खर्च नहीं कर पा रहा था। तब कहा जाता था कि रूसी सेना अमेरिका से काफी पीछे हो चुकी थी। उसकी तकनीक आधुनिक युद्ध और समय के अनुकूल नहीं, बल्कि सोवियत युग के समय की हो चुकी थी। स्थायी और अस्थायी सेना रूस ने कम खर्च में बेहतर सेना तैयार करने के लिए एक रणनीति बनाई। उसने सैन्य भर्ती में ही व्यापक बदलाव किया। रूस ने भर्ती का समय एक साल का कर दिया। साथ ही उसने लोगों के लिए कुछ शर्तों के साथ सैन्य प्रशिक्षण भी जरूरी कर दिया। इससे उसे अलग-अलग सैन्य टुकड़ियां बनाने में मदद मिली। उसने बड़ी संख्या में लोगों की भर्ती की और अलग-अलग मिशन के लिए अलग-अलग ट्रूप्स बनाए। स्थायी और अस्थायी सेना की रणनीति काम कर गई और रूस का सैन्य प्रशिक्षण पर खर्च काफी कम हो गया। साथ ही उसकी सेना भी मजबूत हो गई। अब तकनीक की बारी रूस ने सैन्य ताकत को मजबूत करने के लिए पहला कदम तो उठा लिया, लेकिन आगे लंबी राह तय करनी थी। अब बारी तकनीक की थी। रूसी सेना को सबसे प्रमुख बदलाव के रूप में खुद को तकनीक रूप से उन्नत करनी थी। 2000 के दशक के युद्ध और संघर्षों से साफ होता जा रहा था कि रूसी सेना के हथियार और उपकरण समय से पिछड़ते जा रहे हैं। यहां तक कि वे कई लिहाज से जॉर्जिया जैसे देश से भी पिछड़े हुए थे। यह कॉबैट और सपोर्ट दोनों तरह क तंत्रों के मामले में सही था। रूसी सेना के पास 20 साल से भी ज्यादा पुराने सोवियत हथियार थे। साल 2014 -15 में रूस ने आमूलचूल बदलाव करने का फैसला किया। यह इसलिए किया गया कि रूस रियल टाइम में युद्ध लड़ने में सक्षम हो सके। इसके लिए शक्तिशाली सैटेलाइट चैनल स्थापित किए गए। जमीन, हवा, पानी और अंतरिक्ष में निगरानी तंत्र स्थापित करना शुरू किया गया, जो कॉम्बैट कंट्रोल चैनल्स के जरिए सीधे जानकारी भेज सकता था। इससे हमले करने वाले विभिन्न तंत्र को लक्ष्य को वास्तविक समय में भेद पाने की क्षमता विकसित हो गई। उन्नत तकनीक के हथियार रूस ने अपनी सेना आधुनिक हथियार तंत्रों, हथियार वाहन और कॉम्बैट विमानों की आपूर्ति करना शुरू कर किया। जमीनी सैन्य टुकड़ियों को बड़े पैमाने पर टी-80 टैंक दिए गए, जिसमें सक्रिय रक्षा तंत्र , बीएमपी-3 इंफैंट्री लड़ाकू वाहन और बीटीआर-80 से सुज्जित व्यक्तिगत करियर जैसे आधुनिक तकनीकों से समृद्ध किया गया। इसके अलावा सोवियत युग के हथियारों और उपकरणों के उम्र बढ़ाने के साथ आधुनिक क्षमताओं के साथ उन्नत किया गया। इसके अलावा जमीन और हवा में ताकत बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वायरफेयर सिस्टम, नई कालिब्र क्रूज मिसाइल हाइपर सॉनिक आयुध आदि भी सेना में शामिल किए। रूसी सेना का आधुनिकीकरण की कारगरता साल 2015 में सीरिया में दिखाई दी। 2015 से ही रूस नए और आधुनिक हथियार तंत्रों का परीक्षण कर रहा है। युद्ध के मैदान में विभिन्न परिस्थितियों में अभ्यास कर रहा है। सीरिया में बहुत प्रकार के रोबोट तंत्रों का परीक्षण कर रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले 20 सालों में रूस ने अपनी सेना को आधुनिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस बात को उसके विरोधी नजरअंदाज नहीं कर सकते।


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