लखनऊः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Election 2022) समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव समाप्त हो जाने के बाद एक बार फिर से ईवीएम () चर्चा में है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav On EVM) ने ईवीएम फ्रॉड () का मुद्दा उठाया है। सोमवार को वोटिंग खत्म होने के बाद एग्जिट पोल जारी किए गए थे जिसके हिसाब से भारतीय जनता पार्टी (BJP Uttar Pradesh) दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है। ऐसे में बीजेपी का कहना है कि अपनी संभावित हार को देखते हुए अखिलेश यादव बौखला गए हैं और इसलिए ईवीएम पर दोष मढ़ने लगे हैं। बीजेपी अखिलेश यादव के आरोपों पर आज भले ही मजाक उड़ा रही हो लेकिन ईवीएम पर अविश्वास का सबसे पहला दावा उसी के खाते में है। साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से ईवीएम का इस्तेमाल भारत में चुनाव कराने के लिए हो रहा है। साल 2009 में जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन को सत्ता नहीं मिली और कांग्रेस नीत यूपीए को बहुमत मिल गया, तब भगवा पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ही ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। बीजेपी ने चलाया था ईवीएम के खिलाफ अभियान भारतीय जनता पार्टी ने तब कई संगठनों की मदद से ईवीएम मशीनों के साथ की जाने वाली कथित धोखाधड़ी को लेकर देशभर में अभियान भी चलाया था। इतना ही नहीं, लालकृष्ण आडवाणी ने तो बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव की किताब 'डेमोक्रेसी ऐट रिस्कः कैन वी ट्रस्ट ऑवर ईवीएम मशीन?' की भूमिका भी लिखी थी। किताब में ईवीएम मशीन के खिलाफ कई सारे सवाल उठाए गए हैं। हालांकि, सिर्फ बीजेपी ने ही ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठाया है। कांग्रेस, आरजेडी, बीएसपी, टीएमसी और अब तो एसपी भी इसी जमात में शामिल हो गई है। कांग्रेस, राजद, टीएमसी, आप.. कोई पीछे नहीं साल 2009 में ही ओडिशा विधानसभा चुनाव में बीजू जनता दल की फिर से सरकार बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने भी उठाया था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में नवीन पटनायक की सरकार बनने के पीछे ईवीएम मशीन ही है। कांग्रेस के कद्दावर नेता और असम के पूर्व सीएम तरुण गोगोई ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का जिम्मेदार ईवीएम मशीन को बताया था। राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव और टीएमसी की चीफ और बंगाल सीएम ममता बनर्जी ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता को संदिग्ध बताया था। इसके अलावा दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने तो राज्य विधानसभा में का ट्रायल भी पेश किया था। अरविंद केजरीवाल ने कई बार ईवीएम की जगह पर बैलट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग की है। उत्तर प्रदेश में साल 2017 में बीजेपी की जीत के बाद मायावती ने भी जोर-शोर से ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी को बीजेपी ने नहीं बल्कि ईवीएम ने हराया है। फिर छिड़ी ईवीएम पर बहस अब यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर से ईवीएम को लेकर बहस तेज हो गई है। हालांकि, अखिलेश ने ईवीएम के हैक होने का आरोप नहीं लगाया है। उनका कहना है कि बीजेपी को जिताने के लिए प्रशासन वोटों की चोरी करने की कोशिश में है। उन्होंने इस दौरान यह तक कह दिया कि यह लोकतंत्र का आखिरी चुनाव है। इसके बाद चुनाव के लिए लोगों को क्रांति करनी पड़ेगी। बीजेपी ने इसे सपा मुखिया की बौखलाहट बताया है। बीजेपी ने कहा है कि अखिलेश को चुनाव आयोग, जनता, प्रशासन किसी चीज पर भरोसा नहीं है। 10 मार्च के बाद उन्हें ईवीएम पर से भी भरोसा उठ जाएगा। निराशा की अभिव्यक्ति है ईवीएम पर सवाल? चुनाव आयोग का कहना है कि अन्य देशों में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम से अपने यहां इस्तेमाल होने वाला ईवीएम अलग है। इसे हैक नहीं किया जा सकता है। आयोग ने कई बार सवाल उठाने वाले लोगों को ईवीएम हैक करने के लिए आमंत्रित भी किया है। हालांकि, अभी तक इस आरोप को प्रमाणित नहीं किया जा सका है कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है। ऐसे में कहा जाता है कि चुनाव के बाद हारने वाली पार्टियां निराशा में वोटिंग मशीन पर सवाल उठाती हैं। अखिलेश यादव भी इसके अपवाद नहीं हैं। बीजेपी पर लगे ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप ईवीएम पर सवाल उठाने की फ्रीक्वेंसी इन दिनों काफी बढ़ी है। बीजेपी के साल 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद से तकरीबन हर चुनाव में विपक्षी दल यह आरोप लगाते हैं कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। कई बार यह दावा भी किया गया कि ईवीएम में किसी भी पार्टी को वोट देने पर बीजेपी को वोट जा रहा है। हालांकि, इस आरोप की भी कभी पुष्टि नहीं हो पाई है।
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