बात 1998 की है। अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। इस बार उनकी अगुवाई में NDA का दायरा बड़ा था। इसमें जयललिता की AIADMK भी शामिल थी। सरकार के काम शुरू करते हुए ही सियासी संकट शुरू हो गया। जयललिता की पार्टी से तीन सांसद केंद्र में मंत्री बनाए गए। इसमें भूतल परिवहन मंत्री बने सदापति आर. मथैया के खिलाफ पद संभालते ही भ्रष्टाचार का एक मामला खुल गया। चेन्नै की एक अदालत ने अवैध तरीके से संपत्ति अर्जित करने के आरोप में उन्हें समन जारी किया। वाजपेयी के दोबारा पीएम बने अभी दो हफ्ते भी नहीं हुए थे और सरकार की साख सवालों के घेरे में थी। लिहाजा उन्होंने मथैया से इस्तीफा लेकर उन्हें मंत्रिमंडल से मुक्त कर दिया। मथैया महज एक महीने मंत्री रह पाए।
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